शिव धाम - गोला गोकर्णनाथ कारिडोर

गोला गोकर्णनाथ, जो प्राचीन काल से “छोटी काशी” के रूप में विख्यात है, लखीमपुर-खीरी जिले की शिव नगरी है। यहां स्थित श्री गोकरणनाथ महादेव मंदिर का इतिहास त्रेतायुगीन माना जाता है। पुराणों के अनुसार दुर्योधन की बली का महीना होने पर भी भगवान शिव की ही महानता है। प्राचीन कथाओं में वर्णित है कि लंका के दानवराज रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था। शिवजी प्रसन्न होकर प्रकट हुए और रावण से वरदान पूछाnavbharattimes.indiatimes.com। रावण ने शिवजी से अनुरोध किया कि वे उनके साथ लंका चले जाएं। सभी देवता इस वरदान से चिंतित हो गए क्योंकि शिवजी धरती पर स्थापित हो जाना चाहते थे। तब भोलेनाथ ने रावण से शर्त रखी कि जहाँ भी रावण शिवलिंग को जमीन पर रखेगा, वही शिवस्थल बन जाएगाnavbharattimes.indiatimes.comtv9hindi.com

रावण चढ़कर शिवलिंग को कंधे पर उठाए गोकर्णनाथ (गोला) पहुंचा। जंगल में चरवाहे गोकर्ण को उसने शिवलिंग पकड़ने के लिए कहा और स्वयं जलाभिषेक के लिए पशुशाला गयाtv9hindi.com। जब रावण लौट कर आया तो उसने देखा कि हाथ से रखा शिवलिंग जमीन पर है। प्रसन्न न होकर रावण ने शिवलिंग को उठाने की बहुत कोशिश की, परंतु वह बहुत भारी था। क्रोधित हो रावण ने शिवलिंग को अपने अंगूठे से दबा दिया, जिससे शिवलिंग में गाय के कान जैसा “गौकर्ण” चिह्न उभर आया जो आज भी विद्यमान हैtv9hindi.com। इसी घटना के कारण इस स्थान को ‘गोकर्णनाथ’ कहा जाने लगाgolatourism.intv9hindi.com

कहते हैं कि उस चरवाहे गोकर्ण की देह कुएं में गिर गई, जहां उनकी मृत्यु हुई। उस कुएँ को बाद में भूतनाथ कुआँ कहा गया, और यहाँ सावन के अंतिम सोमवार को भूतनाथ का मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैंtv9hindi.com। भगवान शिव ने रावण को समझाने के लिए चरवाहे को वरदान दिया कि आज से उन्हें ‘भूतनाथ’ कहा जाएगा और जो भूतनाथ का दर्शन करेगा उसे विशेष पुण्य लाभ होगाnavbharattimes.indiatimes.comtv9hindi.com। तभी से लाखों भक्त भगवान शिव के दर्शन और पुष्प अर्पण के लिए गोला गोकर्णनाथ आते हैंnavbharattimes.indiatimes.com

एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने कभी त्रिसिंह (तीन-सिंग वाले मृग) का रूप धारण किया था। देवता ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र आदि ने उस रूप में शिव को देखा और उनके दो सींग पकड़ लिए। बारह पुराणों के अनुसार भोलेनाथ ने स्वयं अपने तीन-सिंग वाले शिवलिंग बनाकर देव लोक को दिया। इनमें से एक शिवलिंग गोला गोकर्णनाथ में स्थापित हुआ, दूसरा शुंगेश्वर (बिहार) और तीसरा इंद्र ने स्वर्ग में रखाtv9hindi.com। बाद में जब रावण ने इन्द्र को पराजित कर उनका शिवलिंग उठा लिया तो गोला-गोकर्णनाथ क्षेत्र में भूल से जमीन पर रख दिया, और वहां भोलेनाथ का शिवलिंग स्थायी रूप से स्थापित हो गयाtv9hindi.com

गोला गोकर्णनाथ नाम इसी शिवलिंग की गौ-श्रृंग (गौ-कर्ण) आकृति से पड़ा हैgolatourism.intv9hindi.com। अतः यह मंदिर लोकमान्य लेखक वेंकेश्वर शुक्ल की रचित ‘सावन का मेला’ काव्य का भी ऐतिहासिक केंद्र है। श्रद्धालु मानते हैं कि यहां शिव-भक्ति से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और रावण के अंगूठे की छाप आज भी पुण्य का प्रतीक हैnavbharattimes.indiatimes.comtv9hindi.com

मंदिर की स्थापत्य कला और वास्तु विशेषताएँ

गोला गोकर्णनाथ मंदिर मंजराती (राजस्थानी) स्थापत्य शैली में निर्मित हैdainikbhaskarup.com। मंदिर का परिसर लगभग 5000 वर्ग मीटर में फैला है और इससे सटा लगभग 5300 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में तीर्थस्थल एवं सरोवर हैthemandirdarshan.com। मंदिर की तीन भव्य द्वारशालाएँ हैंthemandirdarshan.com, जिनमें से एक ‘अंगद धर्मशाला द्वार’ मुख्य था (अद्यतन में कार्यरत नहीं है)। गर्भगृह अष्टकोणीय आकार का है और धरातल से इसकी गहराई लगभग नौ फीट है, शिवलिंग गर्भगृह में सतह से डेढ़ फुट नीचे प्रतिष्ठित हैthemandirdarshan.com। मंदिर के चारों ओर सूर्य की किरणों को परावर्तित करने वाली जटिल उत्कीर्णनकारी शिल्पकारी एवं वास्तु-प्रत्येक विवरण लुभावने हैं।

मंदिर की बाहरी दीवारों पर तांत्रिक मंडूक तंत्र से प्रेरित उत्कीर्ण मूर्तियां देखी जा सकती हैं, जिसमें शव-साधना करते साधुओं की आकृतियाँ विशेष हैdainikbhaskarup.com। ऐसे नमूने मंदिर की रहस्यमयी स्थापत्य परंपरा को दर्शाते हैं। मुख्य गर्भगृह की छत पर खूबसूरत गोपुरा एवं गुंबद है, जिन पर पारंपरिक ज्यामितीय और देव-मूर्ति चित्रांकनों का उपयोग किया गया है।

मंदिर के सामने विशाल तीर्थ सरोवर (पवित्र जलकुंड) स्थित है, जिसमें श्रावण मास के दौरान वार्षिक स्नान पर्व मनाया जाता हैen.wikipedia.org। एक ओर सरोवर से होकर बहती सरायन नदी मंदिर परिसर को चारों ओर से घाट प्रदान करती है। सरोवर के किनारे भक्त बैठकर शान्ति-पूजन करते हैं और जलाभिषेक के लिए पानी भरते हैं। मंदिर के प्रांगण में भगवान शिव के वाहन नंदी की प्रतिमा स्थापित है, जो शिवलिंग की ओर मुख किए हुए है। इसके अतिरिक्त परिसर में छोटे-छोटे उपद्वीपों पर अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी हैं। सभी मिलकर एक समृद्ध धार्मिक वातावरण बनाते हैं।

प्रमुख धार्मिक आयोजन

  • चेती मेला (मार्च–अप्रैल) – चैत्र मास में हर वर्ष लगभग एक माह तक विशाल मेला लगता हैthemandirdarshan.com। इस दौरान धर्म-यज्ञ, भजन-कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। श्रद्धालु विशेष रूप से शिवलिंग की विधिवत पूजा-अर्चना करते हैं तथा आसपास श्रद्धालुओं के लिए बाजार एवं चहल-पहल रहती है।

  • सावन मेला (जुलाई–अगस्त) – श्रावण मास में शिवलिंग की महिमा हो-हल्ले से बढ़ जाती है। इस समय पूरे उत्तर प्रदेश से लाखों कांवड़िए गंगा जल लेकर मंदिर में जलाभिषेक करने आते हैंthemandirdarshan.com। हर सोमवार यहां ‘हर-हर महादेव’ के जयघोष के बीच भीड़ उमड़ती हैlivehindustan.com। मंदिर प्रशासन भारी यातायात प्रबंध करता है; सावन के सोमवारों को गोला शहर की मुख्य सड़कों पर भारी वाहनों पर प्रतिबंध लगाया जाता हैlivehindustan.com। सावन के अंतिम सोमवार को जब रक्षाबंधन पर्व भी होता है, तब भक्त हर-हर महादेव का नारा लगाते हुए शिवलिंग पर पुष्प वर्षा करते हैं और विधिवत पूजा-अर्चना करते हैंlivehindustan.com

  • महाशिवरात्रि – चूंकि यह शिव का विशेष उत्सव है, इस दिन गोला गोकर्णनाथ में भी जोरदार आयोजन होता हैthemandirdarshan.com। हजारों श्रद्धालु पूरे दिन और रात्रि शिवलिंग का रुद्राभिषेक एवं पूजा-पूजन करते हैं। रात्रि जागरण, संध्या-आरती, भजन-कीर्तन एवं शिवमंत्र-जाप की धूम रहती हैthemandirdarshan.com

  • रक्षाबंधन – सावन के अंत में यदि रक्षाबंधन आता है तो यह पर्व भी गणमान्य होता है। मान्यता है कि रक्षाबंधन पर शिव की विशेष कृपा होती है। यहां के भक्त रक्षाबंधन पर शिवलिंग में फूल-फली चढ़ा आशीष लेते हैंlivehindustan.com

  • अन्य पर्व एवं मेलों – मंदिर में प्रत्येक सोमवार का विशेष महत्व है। नवरात्रि, दीपावली, त्रयोदशी व्रत आदि पर भी श्रद्धालुओं की अधिक भीड़ रहती है। क्षेत्रीय उत्सवों एवं मेले के आयोजन में स्थानीय प्रशासन एवं नगर पालिका सक्रिय रहती है, जैसे हाल में चैती मेले के लिए 45 लाख रुपये का बजट पास किया गया है100newsup.in

मंदिर में दर्शन और पूजा विधियाँ

गोलागोकरणनाथ मंदिर में रोज सुबह जल्दी से आरंभ होते हैं। श्रद्धालु सबसे पहले मंदिर परिसर के समीप स्थित तीर्थ सरोवर में स्नान करके स्वयं को पवित्र करते हैंen.wikipedia.orgthemandirdarshan.com। इसके बाद मुख्य मंदिर में प्रवेश करके शिवलिंग की ऊँचाई तक पहुँचते हैं। शिवलिंग पर पवित्र जल (गंगा जल) की परिक्रमा करकलात्मक जलाभिषेक किया जाता हैen.wikipedia.orgthemandirdarshan.com। श्रद्धालु दूध, दही, घी, मह के पंचामृत से भी शिवलिंग का अभिषेक करते हैं और उस पर बेलपत्र, धूप-दीप आदि अर्पित करते हैं। पूजा के दौरान शिवभजन-कीर्तन और मंगलाचरण भी चलता है।

दिन में मुख्या पूजाएँ सुबह-सुबह, दोपहर और संध्या के समय होती हैं। प्रत्येक आरती में भक्तों को प्रसाद बांटा जाता है। विशेष अवसरों पर रुद्राभिषेक (शिव मंत्रों के साथ अभिषेक) किया जाता है। श्रावण माह के सोमवारों को तथा महाशिवरात्रि पर भक्तों की भारी संख्या को देखते हुए मंदिर में अतिरिक्त पूजा पुजारियाँ की जाती हैं। महाशिवरात्रि के अवसर पर पूरे दिन और रात्रि भर जागरण चलता है, जिसमें भक्त शिव महिम्नो की कीर्तनगुंजन करते हैंthemandirdarshan.com

पूजन के नियम साधु-पूजा के अनुसार हैं। श्रद्धालु पवित्र वस्त्र पहनकर आते हैं और क्षारयुक्त भोग तथा फल-फूल चढ़ाते हैं। मंदिर ट्रस्ट एवं ब्राह्मण पुरोहितों द्वारा संन्यासियों और भक्तों का सत्कार होता है। परिसर में लगी पूजा सामग्री की दुकानें तथा भंडारे भक्तों की सुविधा के लिए खुलते रहते हैं।

मंदिर से जुड़ी मान्यताएँ, चमत्कार और श्रद्धा

गोला गोकर्णनाथ मंदिर से जुड़ी कई मान्यताएं हैं। सबसे प्रसिद्ध मान्यता है कि शिवलिंग पर रावण के अंगूठे का प्रभाव आज भी बना हुआ हैtv9hindi.comnavbharattimes.indiatimes.com। भक्तों का विश्वास है कि रावण की तीव्र भक्ति के समय जो निशान बना, वह पुण्य का प्रतीक है। इसके अलावा चरवाहे गोकर्ण से जुड़ी कहानी के कारण यहां के भूतनाथ कुएं की भी अद्भुत मान्यता है। कथा है कि जब चरवाहे गोकर्ण कुएं में गिरा तो उसकी आत्मा को भूतनाथ का वरदान मिला, अतः भक्त मानते हैं कि भूतनाथ की पूजा से विशेष कल्याण होता हैnavbharattimes.indiatimes.comtv9hindi.com

अतः सावन के हर सोमवार शिवलिंग दर्शन के बाद श्रद्धालु भूतनाथ कुएं पर जाकर उसकी भी पूजा करते हैं, जिससे पुण्य की प्राप्ति होती हैnavbharattimes.indiatimes.comtv9hindi.com। कहा जाता है कि यहां मनोकामनाएँ शीघ्र पूर्ण होती हैं तथा भक्त अपने दुःख-दर्द से मुक्ति पाते हैं। नितांत श्रद्धा से यहां आशीर्वाद लेना श्रद्धेय माना गया है।

इन अठारह सौ वर्षों में अनेक संत और महात्मा भी मंदिर के पुजारी रहे हैं, जिनके योगदान से यहां की महिमा बढ़ी। भक्तों को लगता है कि इस ज्योतिर्लिंग की महिमा काशी के विश्वनाथ के समान है, इसलिए दूर-दूर से आकर भगवान भोलेनाथ की उपासना करते हैं।

आधुनिक व्यवस्थाएँ

मंदिर एवं उसके आसपास की व्यवस्थाओं में निरंतर विकास हो रहा है। राज्य सरकार ने इसे “छोटी काशी” के रूप में संवारा है। अप्रैल 2022 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसी स्थल पर काशी तर्ज पर एक प्राचीन गेट-वे (कॉरिडोर) बनाने की घोषणा की, जिसका सर्वे एवं निर्माण कार्य जारी हैtv9hindi.comthemandirdarshan.com। नगर परिषद ने मंदिर परिसर में कई पुराने धर्मशालाओं और निर्माणों को हटाकर साफ-सुथरा मार्ग बनाना शुरू किया है। इस परियोजना के पूरा होने पर श्रद्धालुओं के लिए सुविधाजनक प्रवेश एवं सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित होगीtv9hindi.comthemandirdarshan.com

नगरीय परिवहन की दृष्टि से मंदिर निकटवर्ती इलाकों से अच्छी तरह जुड़ा है। मंदिर के मुख्य द्वार पर आसानी से ऑटो, सिटी बस एवं टैक्सी मिल जाती हैंthemandirdarshan.com। निकटतम रेलवे स्टेशन गोलागोकरणनाथ (गोला) है, जो लखनऊ, दिल्ली और आसपास के प्रमुख शहरों से रेल द्वारा जुड़ा हुआ हैthemandirdarshan.com। सड़क मार्ग से लखनऊ (लगभग 170 किमी, NH-24) और दिल्ली (लगभग 400 किमी, NH-19) यहां तक सरल यात्रा प्रदान करते हैंthemandirdarshan.com। मंदिर परिसर में प्रसाद की दुकान, धर्मशाला एवं सफाई की व्यवस्थाएँ नगरपालिका द्वारा देखी जाती हैं। हर वर्ष चैती मेला, सावन माह और महाशिवरात्रि के लिए नगर परिषद बजट पास करती है (जैसे चैती मेले के लिए 45 लाख रुपये100newsup.in) एवं सुरक्षा प्रबंध करती हैlivehindustan.com100newsup.in। इन आयोजनों में पुलिस एवं स्थानीय प्रशासन श्रद्धालुओं की सुविधा एवं सुरक्षा के लिए विशेष प्रबंध करते हैं।

मंदिर का पता, संपर्क और पहुँच

पता: श्री गोकर्णनाथ महादेव मंदिर, गोला गोकर्णनाथ, जिला लखीमपुर-खीरी, उत्तर प्रदेश। यह छोटा काशी कहलाने वाला धार्मिक क्षेत्र सरायन नदी के तट पर स्थित हैgolatourism.in

रेलमार्ग: मंदिर का अपना गोलागोकरणनाथ रेलवे स्टेशन हैthemandirdarshan.com। लखनऊ से कई ट्रेनें उपलब्ध हैं (यात्री गाड़ियों से लगभग 4.5 घंटे में पहुँचा जा सकता है) और दिल्ली से भी नियमित रेल लिंक है।

सड़क मार्ग: सड़क द्वारा लखनऊ से लगभग 170 किमी (NH-24 मार्ग) और दिल्ली से 400 किमी (NH-19) की यात्रा हैthemandirdarshan.com। रास्ते में अपने वाहन या बस से गोला गोकर्णनाथ पहुंचा जा सकता है। मंदिर के आसपास स्थानीय परिवहन (ऑटो, टैक्सी) उपलब्ध हैthemandirdarshan.com। निकटतम हवाई अड्डा लखनऊ (चौधरी चरण सिंह एयरपोर्ट) है (लगभग 180 किमी)।

संपर्क: अधिक जानकारी के लिए जिला पर्यटन विभाग की वेबसाइट (गोलागोकरणनाथ पर्यटन – golatourism.in) देखी जा सकती हैen.wikipedia.org। इसके अतिरिक्त, गोला टूरिज्म एवं स्थानीय मंडल कार्यालय से फोन द्वारा भी मार्गदर्शन प्राप्त किया जा सकता है (क्षेत्र कोड 05876)en.wikipedia.org। भक्तवर्ग मंदिर ट्रस्ट कार्यालय से भी सीधा सम्पर्क कर सकता है।

स्रोत: यह जानकारी सरकारी पर्यटन पोर्टल, समाचारपत्र एवं धर्मस्थल से संगृहीत प्रामाणिक लेखों पर आधारित हैgolatourism.intv9hindi.comthemandirdarshan.comthemandirdarshan.comen.wikipedia.org, जिन्हें उपयुक्त उद्धरणों द्वारा पुष्टि की गई है।